
दिव्य सुन्दर परम पावन ।
सकल विद्या केन्द्र तप-धन ।।
नाथ गुरु गोरक्ष की यह साधना की भूमि,
संत - प्रवर कबीर की आराधना की भूमि,
दिव्य सुन्दर परम पावन
सतोमय आनन्द चिद् घन ।।
बुद्ध ने पाया महत्तम काम्य पद निर्वाण,
अमर बिस्मिल ने दिया निज देशहित बलिदान,
दिव्य सुन्दर परम पावन
सिद्धियों का शुभ निकेतन ।।
ज्ञान और विज्ञान का यह सतत् जाग्रत केन्द्र,
कला और साहित्य का यह चिर समादृत केन्द्र,
दिव्य सुन्दर परम पावन ।
योग-क्षेम - समृद्ध नन्दन ।।
अहर्निशि चलते यहाँ है अमृत ऋत सन्धान,
गुरुकुलों सा सदा कुलगुरु को मिले सम्मान,
दिव्य सुन्दर परम पावन ।
स्वर्ग संस्कृति का चिरंतन ।।
सूर्य की पहली किरण देती इसे वरदान,
कर्म-कौशल का जगत में गूँजता मधुगान,
दिव्य सुन्दर परम पावन ।
नमन सौ सौ बार वन्दन ।।
जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव